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Tuesday 27 November 2012

Ashish Pandey seo



जब रात की काली रातों में ,अपने अतीत में जाता हूँ.
कैसे समझाउं इस दिल को ,इस दिल को अकेला पाता हूँ!
            

दिल को अकेला पाते ही ,वो लम्हे जीने को दिल करता है!.....
भूला नहीं जाता उसको ,ये दिल याद उसी को करता है!

                  
यादों को समझाउं कैसे, ....दिल को मैं बहलाऊ कैसे ?
उपर से तो खुश रहता हूँ ..अपनी तन्हाई सबको मैं दिखाऊं कैसे?

                   
यही सब सोचते सोचते , यारों मैं सो जाता हूँ ..
कैसे समझाउं इस दिल को ,इस दिल को अकेला पाता हूँ!

सौजन्य से-

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